याददाश्त और आंखों की रोशनी छीन सकता है ये बुखार

याददाश्त और आंखों की रोशनी छीन सकता है ये बुखार

सेहतराग टीम

इंसेफेलाइटिस का नाम सुनते ही हममें से कई लोगों के जेहन में अचानक यूपी के गोरखपुर का नाम घूमने लगता है। हो भी क्‍यों नहीं आखिर इस जिले में इस बीमारी ने अब तक हजारों मासूमों को मौत की गोद में सुला दिया है। ऐसे में ये जरूरी है कि हम कम से कम इस बीमारी के बारे में सामान्‍य जानकारी रखें ताकि जरूरत पड़ने पर अपनी और दूसरों की जान बचा सकें।

क्‍या है ये बीमारी

इंसेफेलाइटिस मस्तिष्‍क के तंतुओं में सूजन या कहें शोथ की बीमारी है। ये अलग-अलग वायरसों के कारणों होता है और इसलिए इसके इलाज के लिए जरूरी है कि ये पता रहे कि किस वायरस के कारण ये हुआ है। गोरखपुर में जिस बुखार ने दशकों से दहशत फैला रखी है उसका नाम जापानी इंसेफेला‍इटिस दिया गया है। इसका वायरस धान के खेतों में पाए जाने वाले एक मच्‍छर के जरिये छोटे बच्‍चों को अपना शिकार बनाता है। बच्‍चों की मौत इसलिए ज्‍यादा होती है क्‍योंकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद कम होती है अन्‍यथा बड़ों के अधिकांश मामलों में ये बुखार 7 से 10 दिनों में खुद ही ठीक हो जाता है।

क्‍यों होता है और लक्षण क्‍या हैं

दिल्‍ली के जाने माने प्रिवेंटिव एंड रिहेबिलिटेटिव कार्डियोलॉजिस्‍ट और एस्‍कॉर्ट हार्ट इंस्‍टीट्यूट में लंबे समय तक अपनी सेवा देने वाले डॉ. अनिल चतुर्वेदी के अनुसार दिमाग के तंतुओं में शोथ की स्थिति को इंसेफेलाइटिस कहा जाता है। यह बीमारी अलग-अलग वायरसों के मस्तिष्क में संक्रमण के कारण होती है। इन वायरसों में हर्पीज, पोलियो, मम्स, मीजल्स, चिकनगुनियां आदि शामिल हैं। कई बार किसी वैक्सीन के दुष्‍प्रभाव से भी यह बीमारी हो जाती है। हालांकि यह बीमारी किसी भी वायरस के कारण हो, इसके लक्षण एक जैसे ही होते हैं। तेज बुखार, तेज दर्द, गर्दन-पीठ में अकडन, मिर्गी जैसे दौरे, मानसिक संतुलन बिगड़ जाना आदि इस बीमारी के प्रमुख लक्षण हैं।

अधिकांश मामलों में खुद ठीक

डॉक्‍टर चतुर्वेदी कहते हैं कि यह बीमारी आमतौर पर 7 दिनों तक रहती है मगर कुछ मामलों में यह ज्यादा दिनों तक भी रह सकती है। सबसे खतरनाक तथ्य यह है कि इसके कारण मरीज की याददाश्त और आंखों की रोशनी भी जा सकती है। चूंकि इसमें दिमाग के तंतु प्रभावित होते हैं इसलिए पूरे शरीर पर बीमारी का असर हो सकता है।

पता कैसे चलता है

जहां तक बीमारी का पता लगाने के तरीके का सवाल है तो इसका दो तरह से पता लगाया जा सकता है। पहला लक्षण और मरीज की केस हिस्‍ट्री के जरिये। यदि सारे लक्षण इंसेफेलाइटिस वाले हुए और मरीज इस बीमारी से प्रभावित क्षेत्र का रहने वाला हो तो डॉक्टर यह अनुमान लगा लेते हैं कि यह एंसिफ्लाइटिस से ग्रसित होगा। दूसरा तरीका है वायरस की सटीक जानकारी हासिल करना।

एक बार यह पता चल जाए कि बुखार किस वायरस की वजह से है तो इलाज करना आसान हो जाता है। वैसे आधुनिक चिकित्सा पद्वति के पास अभी सिर्फ हर्पीज वायरस का प्रभावी इलाज है। बाकी वायरस के मामले में कुछ खास नहीं किया जा सकता है।

सावधानी

इंसेफेलाइटिस के मरीज को रोशनी से दूर किसी अंधेरी जगह पर रखना चाहिए क्योंकि रोशनी से मरीज को चिढ़ हो जाती है। दिन के समय मरीज को ज्यादा समय उलझाकर रखना चाहिए ताकि वह सो न सके और रात को चैन से सो जाए। चूंकि यह आम धारणा है कि इंसेफेलाइटिस का कोई घोषित इलाज नहीं है इसलिए कई बार मरीज इस बीमारी के बारे में पता चलने पर भयभीत हो जाते हैं और खाना-पीना भी छोड देते हैं। ऐसी स्थिति में उसे नसों के द्वारा आहार दिया जाता है। यह ध्यान रखें कि किसी भी हालत में रोगी के शरीर में पानी ओर नमक की कमी न हो। इसलिए उसे पानी पर्याप्‍त रूप से पिलाते रहें।

कब होती है खतरनाक स्थिति

आमतौर पर यह बीमारी 7 से 10 दिनों में खुद ठीक हो जाती है मगर कुछ मामलों में मरीज को स्थाई नुकसान हो सकता है। जेसा कि पहले लिखा गया है यह बीमारी याददाश्त ले सकती है, आंखों की रोशनी छीन सकती है या छोटे बच्चों का मानसिक विकास भी रोक सकती है। इस स्थिति से बचने के लिए मरीज के परिजनों को कुछ अभ्यास करवाते रहना चाहिए। इसके तहत मरीज से थोड़ी थोड़ी देर पर हाथ की उंगलियां दिखाकर यह पूछें कि कितनी उंगलियां हैं। या कुछ सामान मरीज के कुछ दूर रख दें और उसके बारे में पूछें। यदि मरीज इस तरह के अभ्यास में खरा न उतरे तो उसे तत्काल चिकित्सक के पास ले जाएं।

फोटो साभार: Hindustan times

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